याहोशू 3 : 2 – 14
परिचय
दोनों जासूस यारीहो से लौटे थे, और उन्होने यहोशू के आदेश का पालन करते हुए भूमी और शहर कि जाँच कि थी। रहाब की मदत से वे पकडे नही गए । और अब जनरल यहोश को अपनी रिपोर्ट दे रहे थे, उनके दिल खुशीसे भर गए जब उन्होंने यहोशू 3: 24 के शब्द को कहा : ‘ यहोवा ने सारा देश हमारे हाथ मे दिया है । देश मे रहने वाले सभी लोग भी हमारे कारण घबरा रहे है । ‘
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Sermon : Crossing Our Jordan (Joshua 3)

यह वह खबर थी जिसका यहोशू को इंतजार था ।उसने तुरंत ही इस्राएल के विशाल शिवर मे धावकों को भेजा, यह घोषणा करते हुए की, अगली सुबह सबसे पहले वे शिवीर तोडेंगे और यार्दन नदी के तट पर अपने तंबु गाडेंगे । वे अंततः वादा किए गए देश के प्रवेश बिंदू तक पहुचेंग अध्याय 2 के आयत 1 मे घटना दर्ज है : यहोशू ने अगले दिन सुबह जल्दी प्रस्थान किया और सभी इस्त्राएलियों के साथ बबूल के जंगल को छोड दिया । वे यरदन नदी तक गए और नदी पार करनेसे पहले वही रुके ।
बबूल के बाग से नदी के किनारे तक का सफर आसान है – चिकणी जमीन पर बस कुछ मिल । इसलिए ही मान सकते है की इस्राएलयों ने शायद सुरज के आसमान मे उगनेसे पहले ही अपना काम पूरा कर लिया होगा
। मुझे यकीन है की सभी जनजातीयों मे यहि चर्चा थी : ” यह दिन है ! हम एक सपने के कगार पर खडे होंगे । हम फिर से उस जगह पर आएंगे जहाँ हमारे पूर्वंजीं नो उसे उडा दिया था; केवल इस बार हम आज्ञा मानेंगे !”
लेकीन जैसे ही वे उस प्रसिद्ध नदी के पास पहुँचें, जो उनके और उनके चाहत भरी अचल संपत्ति के बीच एक बाधा बन गई थी, उन्होंने दिन के उजाले में जो देखा वह भ्रमित करने वाला और भयानक दोनों था । यरदन नदी की पार करना असंभव था । आयत 15 मे सरल वाक्य जो हमे तस्वीर देता है : 15 और सन्दूक के उठाने वाले यरदन पर पहुंचे, और सन्दूक के उठाने वाले याजकों के पांव यरदन के तीर के जल में डूब गए (यरदन का जल तो कटनी के समय के सब दिन कड़ारों के ऊपर ऊपर बहा करता है) Joshua 3 :15 l शांत यारदन अब एक उग्र नदी बन गई है, जो बाढ के स्तर पर बढ़ गई है ।जब यारदन मे बाढ़ आती है तो धाराएँ 40 घंटे प्रति मिल तक पहुँच सकती है । इसके अलावा इस नदी के चारों ओर का मैदान उलझी हुई झाडियों और घने विकास से भरा हुआ था । यिर्मयाह नबी ने बाईबल मे यारदन के घने जंगलों का वर्णन किया है । ( यिर्मयाह 12 : 5 ) मे उसने कहा, यरदन के आसपास घना जंगल है जिसे पार करना मुश्किल था ।
तो यह दृश्य है । यरदन नदी ने अपने किनारों को ऊपर उठ लिया है, जो लगभग एक मील तक फैला हुआ है, जिसकी गेहराई 3 फिटसे लेकर 12 फीट तक है, सभी घने झाड़ – झंखाड से ढका हुआ है । जो आसानी से किसिको ठोकर मर सकते हैं और उसे तेज बहाव मे फेक सकते हे । यह वह दृश्य था जिसमे नदीके किनारे लाखो लोगोंने अपने तंबू गाडे थे ।
बाईबल हमे बताती है उन्होंने अगले तिन दिन वही बिताए, बहत धारा ने उनका सारा आत्मविश्वास खत्म कर दिया । प्रतिक्षा ने हर इस्राएली को वास्तविकता से रूबरू कराया । आप रात की आग पर संदेह सून सकते है : ” शायद हमारे बीच के मजब मजबूत लोग, इस बाढ का सामना कर सके, लेकीन हम शिशुओं, बीमारो, बुढो के साथ कैसे पार कर सकते है, और हमारे सभी सामानो को गाडीयो मे बांधकर कैसे पार कर सकते है ? ” पाणी की गर्जन सुनते ही उनके दिल मे एक आग्रहपूर्ण ” नही ” बनने लगा ।
हमारे लिए इस्राएल की भावनों और विचारोंसे जुड़ना आसान है । हममे से बहुत से लोग “व्यक्तिगत यारदन “का सामना करते हैं । जो इतना स्थायी और शक्तीशाली लगता है की हम इसे पार करने की कोशिश भी नही करते । हमारा जिवन रुका हुआ लगता है । परमेश्वर के वादों के गलत पक्ष पर लटका हुआ लगता है । हम जंगल से बाहर निकलने के लिए भरपूर जीवन के बारेमे पढते है । चर्च भी ऐसाही महसूस कर सकता है । परमेश्वर के सात कुछ महान के वादे से गतीरोध, लेकीन सभी प्रकार की बाधाओं से अवरुद्ध ।
लेकीन परमेश्वर के साथ मिलकर हम ” कोई रास्ता नही “ को ” राजमार्ग “ मे बदल सकते है । इस्त्राएल शिवीर और हमारे जीवन पर जो सबसे बढ सवाल मंडरा रहे है वह है, ” क्या हम दृष्टी से चलेंगे या विश्वस से ? क्या हम वास्तव में विश्वास कर सकते है की परमेश्वर असंभव कोभी पूरा कर सकता है ?
यहोशू 3 हमे ऐसा बताता हैं जो पुरे शास्त्र मे दोहराया हैं : जो मनुष्य के लिए असंभव है वह परमेश्वर के लिए संभव है । ( लूक 18: 27 ) परमेश्वर उन कदमो को प्रगट करने वाला था जो हर जीवन और चर्च मे उठाए जाने चाहीए अगर हमे जमीन से आभारी होना हें, अतीत मै फसे रहने से परमेश्वर के भविष्य पर आश्चर्यचकितहोना है! इस अध्याय मे बताए गये अनुभव और निर्णय इस्राएल के लिए एक बडी सफलता थे । पूरी नई पिढ़ ने सिखा की जीत पूरी तरह से उसपर निर्भर थी ।
जब हम परमेश्वर के भविष के कगार पर खडे होते है और उन बाधाओं पर विचार करते है जो हमे रोकती है, तो ऐसा महसूस हो सकता है की हम यहाँ और वहाँ के बीच एक असंभव कार्य का सामना कर रहे है । लेकीन ये सब चिजें उस परमेश्वर के सामने कुछ भी नही हैं जो पार नही कर सकता! वह जानता है की आपको कैसे अटके हुए से विजयी बनाना है ! बस देखो ।
1 ) परमेश्वर की गतीविधीयो का अनुसरन करे(3:2 -4)
तीन दिनके बाद सरदारों ने छावनी मे घुमकर लोगों को आज्ञा दी, ” जब तुम अपने परमेश्वर यहोवा की वाचा के संदक को लेवीय याजकों के व्दारा उठाए हुए देखो, तब तुम छावनी छोड़कर उसके पिछे चले जाना । “
इस्राएलियों के लिए इस आदेश का क्या मतलब था ? क्या परमेश्वर को फर्निचर के एक दुकडे की इतनी परवाह थी क्या वह पहले उसे हटाना चाहता था ? इसमे बडी बात क्या थी ? खैर,जब हम सन्दुक के अंदर देखते है तो हमे एक सुराग मिलता है । पत्थर की पटीयाएँ जिनपर परमेश्वर की ऊँगली ने दस आज्ञाए लिखी थी, उर बक्से के अंदर थी, जो सभी इस्राएलीयो के लिए परमेश्वर के रिश्ते का संकेत था ।
वहाँ मन्ना का एक बर्तन भी था, जो पिछले चालीस वर्षों के दौरान परमेश्वर की अनुग्रहपूर्ण प्रावधान की याद दिलाता है ( निर्गम16: 33 – 34 ) और एक अन्य वस्तू भी शामिल थी : हारून की छडी – एक मृत छडी जिसपर चमत्कारीक रूप से पत्तियाँ और बादाम उगते थे, जो परमेश्वर की शक्ती को प्रमाणित करते थे कि वह अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए किसी भी चीज़ का उपयोग कर सकता है, चाहे वह सबसे छोटी चीज़ ही क्यू न हो ( गिनती : 17 )। तीन एतिहासीक अनुस्मारक, परमेश्वर के प्रेम और इच्छा, प्रावधान और शक्ती के तीन गवाह । यह सन्दूक इस्राएल के प्रति परमेश्वर की वफादारी का स्मारक था ।
लेकीन यह उससे कही ज्यादा था! आप देखिए, संन्दूक के उपर एक सोनेकी प्लेट थी जिसे दया का आसन कहा जाता था जिसपर कबूतरों की दो मूर्तियाँ घूटनों के बल बैठी थी ( निर्गमन 25 : 18 19 1)I भजन 80:1 और 99:1 मे परमेश्वर को ” करूबों पर विराजमान ” के रूप मे वर्णित किया गया है । परमेश्वर यही, दया के आसन के ऊपर प्रकट हुए जो शक्ती के पिछले कार्यो को वर्तमान अर्थ दे रहे थे ।
यह सन्दूक पूराने नियम में इम्मानुएल के बराबर था,जिसका अर्थ हे ” परमेश्वर हमारे साथ है “। जब यह सन्दूक मार्ग दिखाता था, तो इसका अर्थ था, की परमेश्वर आगे था । ऐसा कहा जा सकता है की वह कनान मे पहला कदम उढाएगा । उनका कार्य उसके नेतृत्व का अनुसरण करना, उसकी उपस्थिती का अनुसरण करना, उसके पिछे आना था ।
पद 4 मे उनके व्दारा कि गई कार्यवाही का विवरण इस प्रकार हे : ” परंतु अपने और जहाज के बीच, लगभग 1,000 गज की दूरी रखो । उसके निकट मत जाओ, ताकी तुम जाने का रास्ता न देख सको, क्योंकी तुम पहले कभी इस मार्ग से नही गए हो । ” परमेश्वर इस बात को लेकर बहुत खास था कि, सन्दूक से कितनी दूरी रखी जानी थी । और उसके कारण स्पष्ट है : वह चाहता था कि इस्राएल के सभी लोग देखे की परमेश्वर उन्हें किस रास्ते पर ले जाना चाहता है । अगर सामने वाला समूह बहुत करीब आ जाता, तो केवल मुठ्ठीभर लोग ही इसे देख पाते ।
तो अब इस दृश्य की कल्पना करे : सारा इस्राएल यरदन नदी के किनारे एक ढलान वाली पहाडी पर डेरा डाले हुए है । सन्दन उनसे l1,000 गज की दूरी पर रखा गया है । राष्ट्र का हर एक व्यक्ती इसे देख सकेगा । याजक इसे छडों द्वार अपने कंधो पर उठाकर यारदन के सफेद पाणी के और बढेंगे। और हर कोई इस बातको समझ जाएगा : परमेश्वर का इरादा था कि इस्राएल उसके साथ यारदन को पार करे । लेकीन यह तभी हो सकता था जब वे उस पर ध्यान केंद्रीत करे और उसका अनुसरण करे ।
सदीयों बाद, परमेश्वर की सच्चा सन्दुक हमारे बीच आएगा, जीवित इम्मानुएल । सन्दुक मं दस आसाए थी ; यीशु ने व्यवस्था को पुरा किया (मत्ती 5:17)। सन्दुक मे मन्ना सुरक्षित था जिससे परमेश्वर ने उन्हे जंगल से खिलाया ; मसीह ज जीवन की रोटी है ( यूहन्ना 6 : 31 – 46 ) । सन्दुक मे मृत्यू से जीवन लाने की परमेश्वर की सामर्थ का प्रतीक था ; यीशू मृितकों में से जीवित है और पिता के दाहिने हात पर बैठा है । और इसलिए इब्रानियों 12: 2 हमे यीशू पर अपनी नज़र रखने के लिए कहता है । जो हमारे विश्वास स्रोत और परिपूर्ण करने वाला है ।
हम सभी लगातार, हर पल भविष में प्रवेश कर रहे है । जब हम कैंसर, लेनदारो और संकट जैसे शब्दो से भरी चुनौतीयोंको देखते हे तो यह निष्कर्ष निकालना आसान है कि हम जंगल मे फस गये है, परमेश्वर की भरपूरी से दुर । जब हम बदलाव के बारेमें सोचते हे तो हम मे से बहोत से लोग हार मान लेते हे ।
हम मसीह के शरीर के रूप मे भी ऐसा कर सकते है । हम अपना रास्ता साफ नही देख पाते, नही जानते के हमारे यारदन के बहते पानी के नीचे क्या छिपा है । हमने अंतिम परिणाम पर गौर किया है, हमने उन योजनावों के आकार का आकलन किया हे जिनके बारेमें हमारा मानना है की वे परमेश्वर कि और से आई है, और निष्कर्ष निकालना है की कोई मानवीय रास्ता नही है ।
जब आप असंभव का सामना कर रहे हो, तो आप क्या करते है ? आप वही करते है जो पतरस ने पाणी पर चलते समय किया था : आप अपनी आँखें येशू पर टिकाते है । जिस क्षण उसने अपनी आँखें हटाई और अपनी चारों और उग्र समुद्र को देखा, उसे याद आया की ” लीग पानी पर नही चल सकते” और वह डुबने लगा ( मत्ती 14: 27 – 3 1 ) । हम सभी को अपने परमेश्वर पर अपना ध्यान केंद्रीत करना चाहिए और उनका अनुसरण करना चाहिए, ताकी जहाँ वह ले जाए, हम उसका अनुसरन करे ।
2 ) स्वयं को पवित्र करे
यहोश ने लोगोंसे कहा, “अपने आप को पवित करो, क्योंकी यहोवा कल तुम्हारे बीच चमत्कार करेगा । “पवित्र करने के लिए हिब्र शब्द का अर्थ है, ” तैयार होना, समर्पित होना,पवित्र होना, या अलग होना । ” परमेश्वर अपने लोगोसे कह रहा था कि यदी वे उस अभेद्य को पार करने जा रहे है, तो उन्हें उसके लिए अलग होना चाहिए । उन्हें पवित्र होना चाहिए । इसमें मूल रूप से दो चिज़े शामिल थी :
a) प्रत्येक ज्ञात पाप के लिए व्यक्तिगत पश्चाताप
इस्राएल के मार्ग मे अवरोध उत्पन्न होने का एक मुख्य कारण पाप है, और एक कारण यह भी है कि हम अक्सर अपने मार्ग में अवरोध पाते है । भविष्यवक्ता यशयाह ने लिखा ” निश्चय यहोवा का हाथ बचाने के लिए छोटा नही, और उसका कान सुनने के लिए बहरा नही है । तुम्हारे अधर्म के कामो ने तुम्हारे और तुम्हारे परमेश्वर के बीच दिवार खड़ी कर दी है, और तुम्हारे पापों ने उसे तुमसे अपना मुख छुपाने पर विवश कर दिया है, और वह तुम्हारी नही सुनता । “( यशयाह 59:1,2 )
परमेश्वर के लोगो की मण्डली पर पाप का क्या प्रभाव पडता है ? परमेश्वर हमे दिखाता हे । कुछ समय बाद जब वे कनान मे प्रवेश कर चुके थे, तब एक व्यक्ती ने पाप किया – लाखों लोगों मे से एक ने परमेश्वर के स्पष्ट निर्देश की अवाज्ञा की । लेकीन आकान के पापने पूरे राष्ट्र पर दुखः ओर हार ला दी । उसके कई रिश्तेदार मर गए, जबकी उसे आसान जीत मिलनी चाहिए थी ( यहोशू 7 )I
अपने इतिहास के सबसे महान दिनों मे से एक पूर्व संध्या पर, इस्त्राएल को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया था कि वे परमेश्वर के साथ सही है – अपने जीवन कि जाँच करे, पापों को स्वीकार करे और त्याग दे, तथा स्वयं को पूरी तरह परमेश्वर को समर्पित करे ।
b ) परमेश्वर को कार्य करते देखने के लिए स्वयं को आत्मिक रूप से सतर्क रखना
पुराने नियम मे समर्पण मे अपने कपडे धोना, योन संबंधो से दूर रहना, अपने काम मे बदलाव करना और अन्य चिज़े शामिल थी । उन्होंने आध्यात्मिक रूप से सतर्क रहने के लिए परमेश्वर के आदेश के अनुसार जीवन में अच्छे और सामान्य कार्यों को जानबुझकर बाधित किया । परमेश्वर उनके बीच ” अद्भुत काम ” करने वाला था ; वे उन कामो मे शामिल होकर इसे चुकना नही चाहते थे जो वे अन्य समय मे कर सकते थे ।
समर्पण का अर्थ है, “मै सामान्य बातो को अलग रखूँगा और अपनी आत्मा को
यह देखने के लिए तैयार रखूँगा की परमेश्वर मेरे चारों ओर कहाँ काम कर रहा है, ताकी मै उसके साथ ज़ड सकु । ” पार न किए जा सकने वाले मार्ग को पार करने के लिए हमे 1 ) येशू पर अपनी दृष्टि टिकानी चाहीए – उसकी गतीविधियों को महसूस करना चाहिए और उसका अनुसरण करणा चाहिए 2) अपने आप को पाप से अलग कर के उसके लिए समर्पित करणा चाहिए चारों ओर प्रभू के हाथ के लिए आध्यात्मिक रूप से सतर्क रहना चाहिए।
यदी हमने यह कर लिया हे, तो एक और बात शेष रह जाती है :
c) बाहर निकलकर स्थिर खडे हो जाओ (7 – 13 )
पद 7 – 8 को देखें: यहोवा ने यहोशू से कहाँ ” आज मैं सब इस्त्राएलियों के सामने तुमें महिमा देन आरंभ करूँगा, जिससे वे जान ले की जैसे मै मुसा के संग रहता था, वैसे ही मै तेरे संग भी रहुंगा । वाचा का सन्दुक उठाने वाले याजको को आज्ञा दे, की जब तुम जल के किनारे पहुंचो, तों यरदन मे खडे रहो । “
अब आयत 13 पर जाएँ: जब याजकों के पाँव जो यहोवा, सारे पृथ्वी के प्रभ का सन्दूक उठते है, यरदन के जल मे पडेंगे, तब उसका जल रुक जाएगा । और जो जल निचे की ओर बहता है, वह इकठ्ठा होकर खडा हो जाएगा । “
सत्य का क्षण आ गया है ! वाचा का सन्दुक लेकर चलने वाले याजको को बाढ के पाणी मे उतरणा चाहिए और फिर वही स्थिर हो जाना चाहिए! पानी मे उतरने के लिए परमेश्वर के आदेश ने उन्हे अपने पैर भिगोने के लिए कहा । विश्वास आपको परमेश्वर के मार्ग पर, परमेश्वर के समय पर आगे बढाता है । और एक क्षण आएगा जब आपको परमेश्वर ने जो कहा है उसके अनुसार कार्य करना होगा । यदी आप ऐसा नही करते है, तो आप कभी भी यारदन नदी पार नहीं कर पाएँगे ।
इसे समझे: प्रभू पर ध्यान केंद्रीत करना आवश्यक है । और खुद को समर्पित करना महत्वपूर्ण है । लेकीन, जब तक हम विश्वास का वह कदम नही उठायेंगे, तब तक हम नदी पार नही कर पायेंगे ।हमारी आँखे और हमारा दिल सही हो सकता है, लेकीन अगर हम चुनौतीयों का सामना करने के लिए अपने कदम नही बढ़ते है तो हम कभी भी परमेश्वर के काम मे प्रगती नही कर पाएँगे । हमे खुद को – अपना समय, अपनी ऊर्जा, अपना पैसा, अपना जीवन परमेश्वर के काम के लिए समर्पित करना चाहिए, अन्यथा यह नही होगा ।
लेकिन मै यहाँ कुछ और जोडना चाहूंगी । मै उनके भरोसे मे एक तत्व देख सकती हूँ जो सभी सच्चे विश्वास मे मौजूद होता है । बाहर निकलने के बाद , वे स्थिर खड़ रहे ( वचन 8 ) क्यो ? वे परमेश्वर की शक्ती पर प्रतिक्षा कर रहे थे । अपनी सारी गातीपिधियों मे उन्होंने निर्भरता बनाए रखी । उनका स्थिर खडे रहना इस तथ्य कि गवाही देता है की सब कुछ परमेश्वर से आया है । वे स्वीकार कर रहे थे की यह उनका काम नही था जिसने कुछ भी बदला – यह परमेश्वर और केवल परमेश्वर था । वे बाहर निकले और, स्थिर खडे रहे ।
मै आपको थोड़ी पवित कल्पना के साथ देखने मे मदद करूंगी । गुजरते हुए यारदन के तट के पास तलवार और ढाल के साथ सशस्र योधा खडे थे । उनके बगल मे अपने डंडों पर काँपले हुए लोग, माताएं और कुछ असहाय्य बच्चे । चारों ओर झुंड और सामान इकठ्ठा थो, जब परमेश्वर ने रास्ता खोला ।
सभी लोगों की नजरे उस संदूक पर टिकी थी, जो याजकों के कंधो पर रखा हुआ था, तो नदी के उथले पानी मे चल रहे थे । हर कोई तैयार था – दिल से साफ और आध्यत्मिक रूप से सतर्क, किसी ऐसी चिज़ की प्रतिक्षा मे जो केवल परमेश्वर ही कर सकता था । पहले से ही विश्वास का कदम उठाया जा चुका था । अब वे स्थिर खडे थे और लोगों पर एक बड़ शांती छा गई ।
फिर, किसीन देखा की पानी कम हो रहा था । यह तेजी से गिर रहा था! नदी के उपर कही उनकी नजर से परे ( सटीक रूप से 19 मील उपर ) पानी एक बडे क्रिस्टल के ढेर मे जमा हो गया था । नदी का तल सूखा था । वास्तव, मे यह मृत सागर तक दक्षिण की ओर पूरी तरह से सुख थी । अब नदी की गडगडाहट की जगह परमेश्वर के लोगो कि गडगडाहाट ने ले ली थी जो एक बडे झुंड मे आगे बढ रहे थे जो एक मिल या उससे ज्यादा तक फैला हुआ था ।
यह घटना इतनी विस्मयकारी थी कि इस्राएल के मन मे इस के बारे मे गित लिखें गए । भजन संहिता 114:3 – 7 मे दर्ज है : समुद्र ने देखा और भाग गया ; यरदन नदी पिछे मुड गई । पहाड मेढ़ो की तरह उछलने लगे; पहाडियाँ मेमनों की तरह उछलने लगी । हे समुद्र तू क्यों भाग गया ? यरदन नदी तु क्यों पिछे मूड गया ? पहाड़ तू मेंढो की तरह क्यों उछलने लगा ? पहाडियाँ मेमनों की तरह क्यों उछलने लगी ?( यहा उत्तर है ) हे पृथ्वी, यहोवा के सामने, याकुब के परमेश्वर के सामने काँप उठा ।
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